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चेतावनी : लाइम रोग का कहर, पुष्टि के लिए दिल्ली एम्स भेजे गये नमूने

Lucknow Desk : अब दुनिया में तरह - तरह की बीमारी उत्पन होने लगी है। कभी लोग कोविड से परेशान तो कहीं किसी और बीमारी से परेशान। वहीं अब दुर्लभ लाइम रोग के मरीज पहली बार हिमाचल में पाया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक प्रोजेक्ट के तहत इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला के विशेषज्ञों ने लाइम रोग के संदेह पर 232 लोगों के नमूने एक जगह किए थे। इनमें से जांच में 144 मामले पॉजिटिव पाए गए हैं। नमूने आगामी पुष्टि के लिए एम्स नई दिल्ली भेजे गए हैं। रिपोर्ट आने पर स्पष्ट होगा कि इनमें से कितने लोगों में लाइम रोग है।

लाइम रोग क्या है?
लाइम रोग एक जीवाणु संक्रमण है जो बोरेलिया बर्गडोरफेरी और शायद ही कभी, बोरेलिया मेयोनी बैक्टीरिया के कारण होता है। संक्रमित बैकलेग्ड टिक काटने पर बैक्टीरिया संचारित कर सकते हैं। बैक्टीरिया तब आपके रक्तप्रवाह के माध्यम से यात्रा करते हैं। जब जल्दी इलाज नहीं किया जाता है, तो संक्रमण एक सूजन की स्थिति में बदल सकता है जो त्वचा, जोड़ों और तंत्रिका तंत्र सहित आपके शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करता है।

ऐसे होता है इस रोग का संक्रमण

पहला चरण : टिक के काटने की जगह दाने दिखाई देते हैं। इससे बुखार, सिरदर्द, अधिक थकान और मांसपेशियों में दर्द होता है।

दूसरा चरण : उपचार के बिना 3-10 सप्ताह में कई चकत्ते दिखाई दे सकते हैं। इससे गर्दन में दर्द और अकड़न, चेहरे के एक या दोनों तरफ की मांसपेशियों में कमजोरी, अनियमित दिल की धड़कन, पीठ में दर्द, हाथों या पैरों का सुन्न होना, आंखों में दर्द, अंधापन और घुटने में दर्द रहता है।

तीसरा चरण : टिक के काटने के 2-12 महीने बाद शुरू होता है। हाथों और पैरों के पीछे की त्वचा पतली पड़ जाती है।

कैसे होती ये बीमारी 
आपको बता दे की यहां बीमारी मई से सितंबर के बीच होती है। यह टिक जंगल और आसपास के इलाकों में पाया जाता है। यह पशुओं से चिपककर रक्त चूसता रहता है। टिक चूहों, बैलों-गायों व पक्षियों की कुछ प्रजातियों में पाया जाता है। लाइम रोग अमेरिका और यूरोप में तेजी से बढ़ने वाली वायरस जनित बीमारी है। यूरोप से यह पिछले 25 वर्षों से दुनियाभर में फैल रही है।


 


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