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पटेल-नेहरू को लेकर Owaisi ने कह दी बड़ी बात, कहा- मुसलमानों के साथ धोखा हुआ
Thursday, 21 Sep 2023 00:00 am
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Lucknow Desk: मुस्लिम आरक्षण को लेकर गहरे मतभेद सामने आए है। बताया जाता है कि एक वक्त था कि जब एक धड़ा मौलाना आजाद की अगुवाई में था जो मुस्लिम आरक्षण चाहते थे और दूसरा पक्ष मौलाना तजम्मुल हुसैन के साथ था जो आरक्षण के पैरोकारों पर हमलावर थे. बता दें कि महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करते हुए असदुद्दीन ओवैसी संविधान सभा तक पहुंच गए और नेहरू -पटेल पर आरोप लगा डाला है। उन्होंने कहा कि धोखा न दिया होता तो आज संसद में मुसलमानों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होता।

क्या है इसकी असलियत?

दरअसल, संविधान सभा के 27 अगस्त 1947 के प्रस्ताव के द्वारा अंग्रेजों के दौर में चल रही पृथक निर्वाचन प्रणाली समाप्त हुई। पुरानी व्यवस्था में मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित थे। विभाजन की पीड़ा से गुजरते देश को इस बात का मलाल था कि दोहरी निर्वाचन पद्धति ने अलगाव और सांप्रदायिकता की विष बेल को खाद पानी मुहैय्या किया और नतीजतन देश दो हिस्सों में बंटा। सरदार पटेल की अध्यक्षता वाली अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जुड़ी सलाहकार समिति के सामने सवाल था कि चुनाव की दोहरी व्यवस्था जारी रहे अथवा इसे संयुक्त किया जाए। विपुल बहुमत से समिति की राय थी कि दोहरी चुनाव प्रणाली ने सांप्रदायिकता को घातक सीमा तक बढ़ाया और बदले हालात में राष्ट्रहित में इससे तत्काल छुटकारा और केंद्रीय एवम प्रांतीय सभाओं के सभी चुनाव सम्मिलित विधि से कराए जाने जरूरी हैं। इसी से जुड़े एक अन्य प्रस्ताव को संविधान सभा ने पारित किया, जिसके तहत अनुसूचित जातियों के लिए तो आरक्षण की व्यवस्था हुई लेकिन अल्पसंख्यकों का आरक्षण समाप्त हो गया। सरदार पटेल ने इस प्रस्ताव को अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के विचारों के तालमेल का नतीजा बताया था।

दुखदायी नतीजे, आजाद भारत को चाहिए था छुटकारा

1909 में पृथक निर्वाचन प्रणाली वजूद में आई थी। मुस्लिम समर्थन की आस में कांग्रेस ने भी 1916 में इसका समर्थन किया। इसे लखनऊ समझौते के नाम से जाना जाता है। 1932 के कम्युनल अवार्ड और 1935 के इंडिया एक्ट ने इसे और विस्तार दिया। इसके नतीजे दुखदायी साबित हुए। आजादी बाद उससे छुटकारा हासिल करना देश की प्राथमिकताओं में था। वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय की चर्चित किताब ,” भारतीय संविधान : अनकही कहानी में इस प्रसंग का विस्तार से जिक्र है।

विभाजन बाद सलाहकार समिति में नए प्रतिनिधि तजम्मुल हुसैन और बेगम एजाज रसूल शामिल किए गए। तजम्मुल हुसैन मुस्लिम लीग के उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने भारत में रुकने का फैसला किया। सलाहकार समिति की पहली ही बैठक में अल्पसंख्यकों का आरक्षण खत्म करने का प्रस्ताव रखने वालों में तजम्मुल हुसैन भी शामिल थे। डॉक्टर अंबेडकर की राय थी कि, चूंकि संविधान के प्रारूप में इसे नहीं हटाया गया है , इसलिए इसे जारी रहना चाहिए। लेकिन समिति के अध्यक्ष सरदार पटेल ने निर्णय दिया कि समिति इस पर फिर विचार कर सकती है। उनका मानना था कि इस सवाल पर अल्पसंख्यकों में आम राय होनी चाहिए।

आरक्षण के सवाल पर मुसलमानों में मतभेद

आरक्षण के सवाल पर मुस्लिम सदस्यों के बीच ही गहरे मतभेद थे। मौलाना आजाद की अगुवाई वाला धड़ा आरक्षण को जारी रखने के हक में था। मौलाना हफीजुर रहमान इस गुट के प्रवक्ता थे। दूसरी ओर तजम्मुल हुसैन आरक्षण के तरफदारों पर हमलावर थे। उन्होंने कहा, ” अतीत को भूल जाएं और सेक्युलर राज्य बनाने में मदद करें।बेगम एजाज रसूल की दो टूक थीं। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान बन गया है। भारत में जो मुसलमान हैं, उनके हितों का तकाजा है कि वे अलग -थलग न रहें बल्कि भारत की मुख्यधारा में रहने का विचार बनाएं, इसलिए आरक्षण की मांग छोड़ देना बेहतर है।बहस के दौरान पटेल आमतौर पर चुप रहे। बेगम के भाषण के बाद उन्होंने कहा कि इस सवाल पर मुस्लिम प्रतिनिधि अभी भी दो मत के हैं। आम सहमति के लिए थोड़ा और वक्त दिया जाना चाहिए।

अल्पसंखकों के आरक्षण के पक्ष में सिर्फ 3 वोट

11 मई 1949 की बैठक में यह मसला फिर उठा था। इस बैठक में मौलाना आजाद की अगुवाई वाले राष्ट्रवादी धड़े के प्रतिनिधि खामोश थे। भारतीय संविधान : अनकही कहानी में के.एम.मुंशी को उद्धृत किया गया है, मुझे बाद में पता चला कि मौलाना आजाद ने निर्देश दिया है कि आरक्षण का आग्रह नहीं करना है। तजम्मुल हसन विदेश गए हुए थे। बेगम एजाज रसूल बोलने से कतरा रही थीं। पटेल के आग्रह पर वे बोलीं। बेगम ने आरक्षण समाप्त करने की मांग की। पटेल ने प्रसन्नता जाहिर की कि मुस्लिम समुदाय ने संयुक्त चुनाव क्षेत्र के लिए आम सहमति प्रकट की है। अंत में ईसाई प्रतिनिधि एच.सी.मुखर्जी ने प्रस्ताव किया कि अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की कोई आवश्यकता नहीं है। 26 मई 1949 को तीन के मुकाबले अट्ठावन मतों से वह प्रस्ताव पास हो गया , जिससे अल्पसंख्यकों के आरक्षण की समाप्ति और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।

आपको जो मिला भगवान भला करे, पर न भूलिए गरीब मुसलमानों के कष्ट

मद्रास के एस. नागप्पा ने इस मौके पर कहा था कि अंग्रेजों ने दो शताब्दियों में जिसे समस्या बनाया, सरदार ने उसका दो वर्ष में समाधान कर दिया। अंग्रेजों ने फूट फैलाई। कमेटी ने एकता के सूत्र दिए। एच.सी.मुखर्जी ने कहा कि अगर हम असांप्रदायिक राज्य और एक ही राष्ट्र चाहते हैं तो हम धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को राजनीतिक संरक्षण की मान्यता नहीं दे सकते। बेगम एजाज रसूल ने मुस्लिम लीग के मोहम्मद इस्माइल के पृथक निर्वाचन मंडल जारी रखने के सुझाव को निरर्थक बताया।

पटेल ने इस अवसर पर कहा था कि जो धारणा आपके दिमाग में अब तक थी और जिसके अनुसार अब तक आप चलते थे, उसे आप हमेशा के लिए हटा दीजिए। अब यह एक स्वतंत्र देश है। यहां आप देश के भविष्य को अपनी मर्जी के अनुसार स्वरूप दे रहे हैं। इसलिए बराय मेहरबानी आप अतीत को भूल जाइए। इसे भूलने की कोशिश कीजिए। अगर ऐसा करना आपके लिए असंभव है तो आपके लिए अच्छा यह है कि आपको अपने विचारों के अनुसार जो सर्वोत्तम स्थान मालूम पड़ता हो, आप वहां चले जाएं। मैं अब गरीब मुस्लिम जनता को और नुकसान नहीं होने देना चाहता, जिसने काफी मुसीबतें झेली हैं। अपने लिए अलग राज्य और भूभाग पाने के बारे में आपका जो भी दावा हो, मुझे उसके संबंध में कुछ नहीं कहना है। आपको जो भी प्राप्त हो गया है, उसके लिए भगवान आपका भला करे। पर कृपया न भूलिए कि गरीब मुस्लिम जनता ने कितने कष्ट उठाए हैं।

नेहरू के दिल -दिमाग में मुद्दत से चल रहा था संघर्ष

पंडित नेहरू ने इस प्रस्ताव को खुशी के साथ स्वीकार करते हुए कहा था कि, “मुझे ऐसा महसूस हुआ कि इससे मेरी एक बड़ी तकलीफ दूर हुई। राजनीतिक क्षेत्र में पृथक निर्वाचन या अन्य कोई अलगाव की व्यवस्था रखने के खिलाफ मेरे दिल और दिमाग में एक मुद्दत से संघर्ष चल रहा था। मेरे साथी उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने वस्तुतु: ऐतिहासिक प्रस्ताव पेश किया हैं। इस प्रस्ताव का अर्थ है कि हम न केवल उस बात का परित्याग करने जा रहे हैं, जो कि बुरी है, बल्कि हम इसे सदा के लिए समाप्त करके पूरी शक्ति के साथ दृढ़ निश्चय कर रहे हैं कि हम ऐसे पथ पर चलेंगे, जिसे राष्ट्र के प्रत्येक वर्ग के लिए हम बुनियादी तौर पर अच्छा समझते हैं। यह कार्य राष्ट्रीयता की दृष्टि से तो सही है ही, बल्कि हर अलग -अलग वर्ग के हित के ख्याल से भी या आप कह सकते हैं कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सभी के हित के लिए यह कार्य सही है।