Lucknow Desk : जावरा/जावरा विधानसभा का नाम वर्तमान में प्रदेश स्तर पर चल रहा है यहां की राजनीति और राजनीति से जुड़े लोगों की स्थिति यह है कि उन्होंने दोनों ही पार्टियों के टिकट चयन समिति के नेताओं का दिमाग हैंग कर रखा है। नतीजा यह रहा की लगभग पूरे प्रदेश के विधानसभा कैंडिडेट घोषित हो चुके हैं लेकिन जावरा के कैंडिडेट घोषित करने में दोनों ही पार्टिया मानो घबरा रही है।
दोनों में एक और चली है पहले आप आप फिर में पहले आप आप फिर में.......
कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि जावरा अभ्यारण में राज करने के लिए अगर वह शेर को चुनती है तो,,जो आसपास से बकरियां ने जावरा में आकर जो लंबे समय से अपना घर बसा रखा है। और जावरा नगर की जो बकरियां हैं यह दोनों ही तरह की बकरियां सारा चारा खा जाएगी। और चारा तो कांग्रेस के लिए बहुत जरूरी है। और यदि कांग्रेस बकरियों के झुंड को चुनती है ।तो वैसे शेर को चारा खाते हुए आज तक देखा तो नहीं है लेकिन कांग्रेस के साइंटिस्टों ने जो पता लगाया है उसके अनुसार शेर चारे को खा सकता है। अब ऐसे में यह समस्या पैदा हो रही है कि कांग्रेस आखिर करें तो क्या करें ना बकरी के मामले में निर्णय लेकर चारे को बचा पा रही है और ना शेर वाला निर्णय लेकर चारे को बचा पा रही है। और कांग्रेस के लिए चारा बहुत जरूरी है।
अब इसी गुत्थी को सुलझाने में प्रदेश स्तर पर बैठे कमलनाथ जी जोरो सोरों से लगे हुए हैं तो उधर दिग्गी राजा भी अपनी राय दे रहे हैं। अब सभी की राय के बाद टिकट किसे मिलेगा यह तो आने वाला समय बताएगा।
इसी तरह यदि बात भारतीय जनता पार्टी की बात की जाए तो उनकी स्थिति भी इस तरह हो गई है। कि जैसे एक बाप की स्थिति निर्णय लेने में असामान्य हो जाती है जब एक तरफ उसका पुत्र खड़ा हो और दूसरी और उसका जमाई खड़ा हो अब ऐसे आखिर बात किसकी रखी जाए यदि पुत्र की रखी जाए तो पत्नी नाराज बेटी नाराज और जमाई स्वयं नाराज और अगर जमाई की रखी जाए तो भी पत्नी नाराज बेटा नाराज बहु नाराज। अब पिताजी (भाजपा)करें तो क्या करें जमाई का साथ देता है तो घर पर ससुर का साथ देने के कारण अनाज पुत्र और वधू के द्वारा सुबह की चाय नाश्ते से लगा करके तो भोजन तक के फन्दे और दिमाग की तरंगों को हैंग करने वाले ताने,,, और यदि पुत्र का साथ देता है तो पुत्री और जमाई और साथ में वगैरा-वगैरा के ताने और ज्यादा मामला बिगड़ जाए तो जमाई साहब लड़की को घर छोड़ जाने का डर, तो आखिर यह बाप(भाजपा )करें तो क्या करें?
कुछ लोगों ने चुटकी लेते हुए कहा कि यदि मर्दों की लड़ाई में लंबे संघर्ष के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकले तो किसी औरत को बीच में बोल देना चाहिए और ऐसे में अगर औरत सुंदर और सुशील हो तो बड़े-बड़े युद्ध में युद्ध विराम होते हुए हमारे इतिहास में कई बार देखा गया है।
और खुद ना खस्ता उसके बाद भी युद्ध की गुंजाइश हो तो फिर बिंदिया हुआ तो जिंदाबाद है ही