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Holi 2025: 14 या 15 मार्च कब है होली? जानिए होली का सही डेट
Sunday, 09 Mar 2025 17:00 pm
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Lucknow Desk:  होली के त्योहार को रंगों से भरा त्योहार कहा जाता है। यह त्योहार जोश, मस्ती और उमंगों से भरा होता है। बच्चे से लेकर बूढ़ों तक सबको इसका इन्तेजार होता है। ये पर्व आपसी प्यार को बढ़ता है, साथ ही लोगों के बीच गिले-शिकवे को दूर करता है। होली का पर्व दो दिनों का होता है, एक दिन होलिका दहन होता है तो वहीं दूसरे दिन रंग खेले जाते हैं लेकिन इस बार इसकी डेट को लेकर थोड़ा सा कन्फ्यूजन है।

कुछ लोग कह रहे हैं कि होली का त्योहार 14 मार्च को है तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि रंगों वाली होली 15 मार्च को मनाई जाएगी। तो चलिए आप का कन्फ्यूजन दूर करते हैं।

कब मनाई जाएगी?

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होलिका दहन 13 मार्च, 2025 यानी गुरुवार को होगा, जबकि रंगवाली होली का रंग उत्सव 14 मार्च, 2025 यानी शुक्रवार को मनाया जाएगा।

दो दिन मनाई जाती है होली

पहले दिन होलिका दहन यानी छोटी होली जो होलिका दहन की रस्म जो बुराई को जलाने का प्रतीक है। वहीं दूसरे दिन रंगवाली होली यानी धुलंडी है, वह मुख्य दिन जब लोग रंगों, पानी से खेलते हैं और खुशी के साथ जश्न मनाते हैं।

कैसे मनाई जाती है होलिका दहन?

होलिका दहन में लकड़ियों और उपलों का ढेर जलाकर बुराई का अंत करने का प्रतीकात्मक संदेश दिया जाता है। जबकि 'रंग वाली होली' में लोग एक-दूसरे को रंग, गुलाल और पानी से भिगोते हैं। इस दिन विशेष रूप से गुझिया बनाई जाती है।

होली का पौराणिक महत्व क्या है?

होली से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रसिद्ध हैं। इस से एक कहानी प्रहलाद और भगवान विष्णु से जुड़ी है। दरअसल, प्राचीन काल में एक राजा थे जिनका नाम हिरण्यकश्यप था। उनका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और विष्णु जी की भक्ति में लीन रहता था। हिरण्यकश्यप को यह बात पसंद न थी इसलिए उन्होंने प्रह्लाद को कई तरीकों से मारने का प्रयास भी किया। उन्होंने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाए जिसके परिणामस्वरूप होलिका जल कर मर गईं और भक्त प्रह्लाद बच गए। जिसके पश्चात हिरण्यकश्यप की क्रूरता को समाप्त करने हेतु भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप को समाप्त कर दिया। तभी से होलिका दहन का प्रचलन शुरू हुआ और होलिका की अग्नि में बुराइयों के समाप्त होने के बाद खुशियां मनाने के लिए अगले दिन रंग खेलने की प्रथा शुरू हुई।