Lucknow Desk: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले पर रोक लगा दी है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाई है, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना रेप या रेप के प्रयास करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जज बीआर गवई और ऑगस्टिन जॉर्ज की पीठ द्वारा की जा रही है। इससे पहले इस मामले पर जस्टिस बेला त्रिवेदी और प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने सुनवाई से मना कर दिया था।
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने 14 मार्च को कासगंज में एक नाबालिग से हुए यौन उत्पीड़न के मामले में सुनवाई के दौरान विवादित टिप्पणी की थी कि किसी लड़की का स्तन पकड़ना, उसके पायजामे के नाड़े तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचना… रेप या रेप के प्रयास वाले अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।
जस्टिस मिश्रा ने अपने फैसले में इसके पीछे यह तर्क दिया था कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि आरोपितों की कार्रवाई अपराध करने की तैयारी से आगे बढ़ चुकी थी। अदालत ने कहा था कि रेप के प्रयास और अपराध की तैयारी के बीच अंतर को सही तरीके से समझना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी समन आदेश को संशोधित करने का भी निर्देश दिया था।
जिसके बाद से इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले की आलोचना पूरा देश भर में की गई थी। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की वकील अंजलि पटेल ने याचिका दाखिल करके हाई कोर्ट के फैसले में दर्ज कुछ टिप्पणियों को हटाने और उसे रद्द करने की माँग की गई थी। याचिका में यह भी माँग की थी कि हाल के कुछ मामलों में हाई कोर्ट के जजों ने अनुचित टिप्पणियाँ की हैं। इसलिए जजों के लिए भी दिशा-निर्देश जारी की जाए।
जज BR गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने क्या कहा?
जज BR गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय लिखने वाले की ओर से संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है।
यह भी पढ़ें:- "सौगात ए मोदी" पर Mayawati का बयान, जानें अल्पसंख्यकों के लिए क्या की डिमांड?