क्या सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनके चाचा और सपा राष्ट्रीय सचिव शिवपाल यादव एक धड़े पर नहीं हैं। क्या दोनों अलग-अलग नीतियों पर चल रहे हैं? जी हां पर ये सवाल सिर्फ हम नहीं उठा रहे हैं। ये सवाल उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गालियारों में चाचा शिवपाल यादव के एक बयान के बाद उठने लगा है। जहां पर वो कह रहे हैं कि पीडीए तो सिर्फ एक व्यवस्था है जबकि हमारी पार्टी तो सभी वर्गों की पार्टी है। वहीं इसके उलट बात करें अखिलेश यादव की तो वो सबसे महत्वपूर्ण वोटबैंक ही पीडीए यानि पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक को बना रहे हैं।
अखिलेश यादव के ट्वीट
जी हां और उनके एक्स पर किए गए पोस्ट में भी नजर आता है। जहां पर 28 मार्च को उनके द्वारा पीडीए को लेकर एक वीडीयो पोस्ट किया जाता है। जिसमें वे लिखते हैं कि PDA 90% जनता की एकता का नाम है
PDA संविधान और आरक्षण की ढाल है!
बताते चलें कि इस पोस्ट की खास बात ये है कि अखिलेश यादव ने इसे पिन करते हुए अब तक सबसे ऊपर रख है। जो साफ दिखाता है कि 2027 का चुनाव अखिलेश यादव इसी पीडीए के इर्द-गिर्द ही लड़ने वाले हैं। पर यहां पर सिर्फ इस एक ट्वीट की बात नहीं है अखिलेश यादव लगभग अपने हर बयान में इस शब्द का जिक्र करते हैं। वहीं अभी कल ही अखिलेश यादव ने आजमगढ़ की जनता को संबोधित करने के बाद उन्होंने जो पोस्ट एक्स पर डाला उसमें लिखा था कि
कह रहा है आज़मगढ़
पीडीए अब आगे बढ़!
शिवपाल यादव के बदले सुर
तो वहीं दूसरे छोर पर चाचा शिवपाल यादव तो पीडीए का कुछ और ही मतलब समझाते हुए नजर आ रहे हैं। आपको बता दें कि कल इटावा के जसवन्तनगर जहां से शिवपाल यादव विधायक हैं वहीं पीडीए चर्चा कार्यक्रम में मौजूद थे। जहां पर उन्होंने कहा कि पीडीए तो सिर्फ एक व्यास्था है वैसे तो समाजवादी पार्टी में सभी वर्ग के लोग हैं। आपने देखा ही है कि जबसे लोहिया जी के समय से पार्टी बना है तबसे लोहिया जी के आदर्शों और सिद्धांतो पर जब पार्टी बनी उसके बाद इसमे कौन-कौन से लोग रहे हैं जनेश्वर मिश्रा से लेकर के मोहन सिंह से लेकर के नेता जी से लेकर ब्रजभूषण तिवारी सब लोग रहे हैं। समाजवादी विचारधारा पे चलकर उसे आगे बढ़ाया है।
तो ये रहा उनका इस मामले पर पूरा बयान अब सवाल वही है कि क्या चाचा और भतीजे एक पन्ने पर नही हैं या फिर समाजवादी पार्टी पीडीए के साथ-साथ ब्राहम्णों को भी साधने का प्रयास में है? अब ये इसलिए कहा जा सकता है कि इटावा में ब्राह्मण और यादव समाज में हुए विवाद के बीच उन्होंने ब्राहम्णों पर किसी भी तरह की कोई विशेष टिप्पड़ी नहीं की है। साथ ही हाल ही में अंतरिक्ष यात्रा पर गए शुभांशू शुक्ला के लिए बधाई पोस्ट डाला था और उनके घर उनके माता-पिता से मिलने भी पहुंचे थे। इसके अलावा अपने ही पार्टी के कुछ ब्राह्मण नेताओं के घर भोजन पर भी नजर आए थे। पर अब अगर सच में ऐसा है कि अखिलेश यादव सबको खुश रखना चाह रहे हैं 2027 चुनाव से पहले तो वैसे तो अच्छी बात है। पर इस ब्राह्मण और यादव विवाद के बाद कहीं अखिलेश यादव को दो नावों पर सवार होना भारी ना पड़ जाए। खैर ये तो समय बताएगा कि सपा पीडीए के साथ ब्राहम्णों को साधने में कामयाब हो पाती है या फिर उसे पीडीए के कुछ प्रतिशत वोट इसके कारण खोने पड़ सकते हैं। पर ऐसे अब ये देखना दिलचस्प होगा कि हिंदूत्व की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी इस पर क्या पैंतरा लगाती है और अपने कोर वोटर ब्राह्मण को अपने पाले में खींचने का काम कैसे करती है।