Sardar Patel

लौहपुरुष सरदार पटेल पाकिस्तान को देना चाहते थे कश्मीर?, जानिए क्या है पूरा इतिहास

Lucknow Desk: भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और लौहपुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल आज भी अपने कूटनीति क्षमता के लिए याद किए जाते है। उन्होंने भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे एक भारतीय अधिवक्ता और राजनेता थे। जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अहम भूमिका निभाई है।

पटेल पाकिस्तान को देना चाहते थे कश्मीर?

देश की आजाद के बाद सरदार पटेल के सामने एक बड़ी समस्या सामने आई थी। वो समस्या थी रियासत का विलय को लेकर। भारत और पाकिस्तान को किन-किन रियासत का विलय करना होगा, यह सबसे बड़ा सवाल था। देश में ज्यादातर रिसायतों ने भारत में मिलने का फैसला लिया था। एक ऐसी ही रिसायत थी कश्मीर को लेकर। कश्मीर को आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच हालात सामान्य नहीं है।

भारत में रियासतों को शामिल करने की बागडोर सरदार बल्लभ भाई पटेल को सौंपी गई थी। जब रियासतों के विलय की बात सामने आई तो कश्मीर के राजा हरी सिंह ने अपनी रियासत को अलग और स्वतंत्र रखने की बात कही। वो अपने इस फैसले पर टिके रहे।

इसकी वजह उनकी सोच रही। वो मानते थे कि अगर जम्मू-कश्मीर का पाकिस्तान में विलय होता है तो यह जम्मू की हिन्दू आबादी के साथ गलत होगा। वहीं, कश्मीर का अगर भारत में विलय होता है तो यह मुस्लिमों के साथ अन्याय होगा। यही वजह थी कि वो अपनी रिसायस को स्वतंत्र रखने की पैरवी कर रहे थे।

कैसे किया गया समस्या का हल

ऐसे हालात में इस समस्या का हल निकालने की कोशिश की जा रही थी। हालांकि, लॉर्ड माउंटबेटन ने राजा हरीसिंह से काफी पहले ही यह बात कह दी थी कि अगर वो रियासत का विलय पाकिस्तान में करते हैं तो भारत को इसमें आपत्ति नहीं होगी। इस बात का जिक्र माउंटबेटन के राजनीतिक सलाहकार रहे वीपी मेनन ने अपनी किताब इंटिग्रेशन ऑफ द इंडिया स्टेट्समें भी किया है।

सरदार पटेल ने हैदराबाद के बदले कश्मीर का विलय पाकिस्तान में करने के लिए हामी भर दी थी, लेकिन 13 सितम्बर को कुछ ऐसा हुआ कि पूरी योजना ही बदल गई।

सख्त फैसला लिया गया तब भारत का हिस्सा बना कश्मीर

वो तारीख 13 सितंबर 1947 थी। जब सुबह-सुबह सरदार पटेल ने तत्कालीन रक्षा मंत्री बलदेव सिंह को चिट्ठी लिखी। चिट्ठी में लिखा कि कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल किया जा सकता है। इसी दिन उन्हें यह भी पता चला कि पाकिस्तान ने अपने देश में जूनागढ़ के विलय को मंजूरी दे दी है। इसी बात पर वो नाराज हुए।

उनका कहना था कि अगर पाकिस्तान हिन्दू आबादी वाले मुस्लिम शासक के जूनागढ़ रियासत को हिस्सा बना सकता है तो भारत मुस्लिम आबादी वाले हिन्दू शासक के कश्मीर रियासत को हिस्सा क्यों नहीं बन सकता। उसी दिन भारत में कश्मीर का विलय सरकार पटेल का लक्ष्य बन गया।

साल 1957 कश्मीर के इतिहास में बड़ा बदलाव लेकर आया। 1957 में महाराजा द्वारा कश्मीर के भारत में विलय के निर्णय को स्वीकृति मिली। इसकी मुहर लगने के बाद जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू हुआ। संविधान सभा भंग हुई। इसकी जगह विधानसभा ने ली। इस तरह राज्य के संविधान में जम्मू कश्मीर को भारत का हिस्सा बताया गया। यह 26 जनवरी 1957 को लागू किया गया।

कांग्रेसी नेता सैफ़ुद्दीन सोज़ की किताब से विवाद

बता दे कि 2018 में कश्मीर के भारत में विलय पर सरदार पटेल के विचारों के बारे में भारत प्रशासित कश्मीर के कांग्रेसी नेता सैफ़ुद्दीन सोज़ की किताब में की गई एक टिप्पणी से विवाद पैदा हुआ था।

सोज़ का कहना था कि अगर पाकिस्तान भारत को हैदराबाद देने के लिए तैयार होता, तब सरदार पटेल को भी पाकिस्तान को कश्मीर देने में कोई दिक़्क़त नहीं होती। सोज़ ने ये दावा अपनी किताब 'कश्मीर: ग्लिम्प्स ऑफ़ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ़ स्ट्रगल' में किया जिसमें बंटवारे की बहुत सी घटनाओं का उल्लेख किया गया है।


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