
आखिर Akash Anand को चुनाव में क्यों नहीं मिल रही सफलता?
आखिर Akash Anand को चुनाव में क्यों नहीं मिल रही सफलता?
Lucknow Desk: एक समय दलित, शोषितों और वंचितो पर राज करने वाली बहुजन समाज पार्टी का चुनावीं आधार चुनाव दर चुनाव सिकुड़ता जा रहा है। उत्तर प्रदेश में 4 बार सत्ता में राज करने वाली पार्टी के लिए अब तो अस्तित्व बचाने की लड़ाई की लड़ाई हो गयी है। बात करें, 2024 में हुए लोकसभा चुनावों की तो वहां से एक के बाद एक चुनाव पार्टी के लिए किसी बुरे सपने जैसा रहा है। जिसमें पहले महाराष्ट्र फिर हरियाणा, जम्मू-कशमीर और अंत में अब दिल्ली में भी पार्टी एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी। पर अब सवाल खड़ा यह होता है कि आखिर कारण क्या है ? जो पार्टी एक सीट भी पिछले कुछ चुनावों से नहीं जीत पा रही है।
आकाश आनंद पर उठ रहे सवाल
पार्टी के राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर और मायावाती के सियासी उत्तराधिकारी आकाश आनंद पर लगातार दो चुनावों के बाद सवाल लगातार उठ रहा है। क्योंकि दिल्ली और हरियाणा में लड़े गए पिछले दो चुनाव उनकी ही अगुवाई में लड़े गए थे। जिसमें बीएसपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। यही नहीं अगर दिल्ली चुनाव पर नजर डालें तो बसपा ने 70 में से 69 सीटो पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। जिसमें से एक भी प्रत्याशी अपनी जमानत तक बचाने में नाकामयाब रहा। आलम ये रहा कि इनमें से ज्यादातर प्रत्याशियों को एक हजार वोट भी नहीं मिले ऐसे में सवाल उठना लाजमी है। मायावती की पार्टी में 69 में से 53 प्रत्याशियों को 1 हजार वोट से भी कम मिले जबकि 42 सीटों पर तो नोटा से भी कम आंकड़े पर रह गयी पार्टी।
क्यों आकाश को नहीं मिली चुनावों में सफलता
बसपा के गिरता ग्राफ पार्टी के लिए एक मुखअय समस्या है। पर सवाल यह कि आखिर क्यों आकाश आनंद पार्टी को बुलंदियों पर नहीं ले जा पा रहे है। पार्टी की दिल्ली चुनाव में हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी को अधिकतम वोट महज 2581 देवली सीट से मिले तो वहीं सबसे कम मटिया में यह आंकड़ा सिर्फ 130 रह गया। पर इन सबके बाद अब अगर नजर डालें पार्टी कॉर्डिनेटर आकाश आनंद कि तो मायावती ने उन्हें उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड को छोड़कर पूरे देश में उन्हें पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके बाद आकाश ने पहले हरियाणा में लड़ते हुए चुनांवी गठबंधन किया और दिल्ली में अकेले किस्मत को आज़माने का फैसला किया। पर दोनों ही जगह पार्टी को निराशा हाथ लगी। आपको बतातें चलें कि दिल्ली में आकाश आनंद ने चार जनसभाएं की थी। पर चारों ही जगह पार्टी प्रत्याशी जमानत बचाने में नाकामयाब रहे। पर सवाल फिर से यह कि ऐसा हो क्यों रहा है।
दरअसल, आकाश की अगुवाई और उनकी कला को देखें तो आकाश आनंद युवा हैं और आक्रामक तरीके से विपक्ष पर निशाना साधना भी बाखूबी जानते हैं, लोगों में उनकी अपनी लोकप्रियता भी है। इसके बाद भी आखिर आकाश आनंद बसपा को सियासी बुलंदी क्यों नहीं दे पा रहे हैं, जिसे लेकर सवाल उठने लगे हैं। जिस पर कुछ राजनीतिक विश्लेषक जो बसपा के राजनीति पर अच्छे से नजर रखते हैं। वह कहते हैं 17 फीसदी दलित मतदाताओं के होने के बाद भी बसपा का प्रदर्शन नहीं सुधर रहा है, तो पार्टी के लिए चिंता की बात है. मायावती ने आकाश आनंद को हरियाणा और दिल्ली चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन पूरी तरह से नहीं बल्कि आधी- अधूरी ऐसे में आकाश आनंद एक मुख्य चेहरा जरूर थे, लेकिन न ही कैंडिडेट सिलेक्शन की जिम्मेदारी उन्हें मिली और न ही अपनी स्टाइल में प्रचार करने की। ऐसे में आकाश आनंद क्या कर सकते हैं, बस उनके हिस्से में एक और नाकामी जुड़ गई है।
विश्र्लेशकों ने कहा कि कांग्रेस जैसी पार्टी जो सालों तक दिल्ला की सत्ता में कायम रही, वह भी इस समय अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए जूझ रही है। आगे उन्होंने कहा मुकाबला जब सीधा होता है तो उसमें दूसरी पार्टियों का महत्व खत्म हो जाता है। मतदाता भी अपना वोट बर्बाद करने के बजाय मुकाबले में मौजूद दो में से एक को अपना वोट देना पंसद करते हैं और दिल्ली में बसपा के साथ यही हुआ है। देश में मौजूदा दौर गठबंधन की सियासत का है, लेकिन मायावती अकेले चुनाव लड़ने वाले फॉर्मूले पर चल रही हैं. ऐसे में आकाश आनंद चाहकर भी बसपा को न ही गठबंधन की राह पर ले जा पा रहे हैं और न ही पार्टी को जित दिला पा रहे हैं। बसपा के अकेले चुनाव लड़ने से मतदाताओं में जीत का भरोसा कायम नहीं हो पा रहा। इसका खामियाजा बसपा को एक के बाद एक चुनाव में भुगतना पड़ रहा है। बीएसपी ने जिस यूपी में चार बार सरकार बनाई, वहां पर अकेले चुनाव लड़ने पर सिर्फ एक सीट ही जीत सकी। लोकसभा चुनाव में तो खाता भी नहीं खुला। खैर इन सभी चुनावों में हार क बाद मायावती ने भी दिल्ली चुनाव परअपनी प्रतिक्रिया रखी है।
बता दें, दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद मायावती ने किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की है। नतीजे घोषित होने के बाद उन्होंने सिर्फ यही कहा कि दिल्ली की जनता ने ‘हवा चले जिधर की, चलो तुम उधर की’ के तर्ज पर वोट देकर बीजेपी सरकार बना दी। बीजेपी के पक्ष में एकतरफा वोटिंग होने से बसपा सहित दूसरी पार्टियों को काफी नुकसान सहना पड़ा है। उन्होंने बसपा कार्यकर्ताओं को दिए संदेश में कहा कि आंबेडकरवादियों को निराश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनके राजनीतिक संघर्ष को जातिवादी पार्टियां आसानी से सफल नहीं होने देंगी। ऐसे में आगे बढ़ने के लिए पूरे तन, मन, धन से लगातार जारी रखना है तभी यूपी की तरह बसपा के मूवमेंट को सफलता मिलेगी और बहुत कुछ बदलेगा।