निर्मल मन जन सो मोंहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र ना भावा। पोथी पढ़-पढ़ जग मुवा पण्डित भया ना कोय़, ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पण्डित होय।
ये…