Bindeshwar Pathak

सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का निधन, जानें बचपन में क्यों खिलाया गया गोबर

नई दिल्ली: स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक पद्मभूषण बिंदेश्वर पाठक का दिल्ली AIIMS में निधन हो गया है। बिंदेश्वर पाठक 80 साल के थे। दरअसल, 15 अगस्त को सुलभ इंटरनेशनल के केंद्रीय कार्यालय में ध्वजारोहण के बाद अचानक बिंदेश्वर पाठक की तबीयत बिगड़ गई जिसके बाद उन्हें AIIMS लाया गया, जहां उनका निधन हो गया।

कौन है बिंदेश्वर पाठक

डॉ बिंदेश्वर पाठक का जन्म 02 अप्रैल 1943 को बिहार के रामपुर में हुआ था। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविघालय से 1964 में समाज शास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने मास्टर की डिग्री पटना विश्वविघालय 1980 में और 1985 में पीएचडी की उपाधि हासिल की। बिंदेश्वर पाठक को कॉलेज की पढाई पूरी करने के बाद 1968-69 से बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति में काम करने का मौका मिला जिसके बाद उन्होंने सुरक्षित और सस्ती शौचालय विकसित करने पर जोर देने के लिए कहा जाने लगा। इसके साथ ही उन्होंने दलितों के सम्मान के लिए भी काम करना शुरु कर दिया। बिंदेश्वर पाठक ने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की थी।

सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना

गौरतलब है कि बिंदेश्वर पाठक ने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की थी। यह एक सामाजिक संगठन था जिसमें मुख्य मानव अधिकार, पर्यावरण, स्वच्छता और शिक्षा के क्षेत्र में काम होता है। बिंदेश्वर पाठक ने महिलाओं के लिए बहुत काम किया है। सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना के साथ ही उन्होंने दो फ्लश टॉयलेट भी विकसित किया। सुलभ ने समाज के लिए महिला सशक्तिकरण, स्वच्छता, स्वास्थ्य और महिलाओं के लिए अनेक काम किया है।

डिस्पोजल कम्पोस्ट शौचालय का आविष्कार

बिंदेश्वर पाठक ने भारत में मैला ढोने की प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया जो देश में स्वच्छता अभियान में अहम भूमिका निभाई। देश में शौचालय निर्माण विषय पर उन्होंने बहुत शोध किया। डॉ. पाठक ने सबसे पहले 1968 में डिस्पोजल कम्पोस्ट शौचालय का आविष्कार किया, जो कम खर्च में घर के आसपास मिलने वाली सामग्री से बनाया जा सकता है।

यह आगे चलकर बेहतरीन वैश्विक तकनीकों में से एक माना गया। उनके सुलभ इंटरनेशनल की मदद से देशभर में सुलभ शौचालयों की शृंखला स्थापित की।

महिला को छूने पर खिलाया गया था गोबर

एक बार बिंदेश्वर पाठक ने किसी महिला के पैर छूते हुए देख लिया। जिसके बाद उनक घर में कोहराम मच गया। सर्दी के दिन थे, उनकी दादी ने उन्हें पवित्र करने के लिए गाय का गोबर खिलाया और गोमूत्र पिलाया। गंगा जल से स्नान करवाया। उस समय पाठक की उम्र 6 साल थी, इसलिए छुआछूत की घटना को अधिक समझ नहीं पाते थे।


Comment As:

Comment (0)